यह जो उजाले हैं उनके दरीचों से अँधेरा झाँक रहा है
सुबह होती है और रात सा मातम छा जाता है,
दिन भर कि थकी रौशनी मनो साँसे तोड़ रही है
जैसे दरख्तों से तलाक़शुदा पत्ते
और बादल तैयार हैं एक काले कफ़न के साथ,
अजब मरासिम है,
रौशनी कि तड़प रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया को चूमने के लिए ...
सुबह होती है और रात सा मातम छा जाता है,
दिन भर कि थकी रौशनी मनो साँसे तोड़ रही है
जैसे दरख्तों से तलाक़शुदा पत्ते
और बादल तैयार हैं एक काले कफ़न के साथ,
अजब मरासिम है,
रौशनी कि तड़प रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया को चूमने के लिए ...
No comments:
Post a Comment